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लायक कैसे बन पाते हम जब ना लायकी किस्मत में थी भर

लायक कैसे बन पाते हम जब ना  लायकी किस्मत में थी
भरोसे का साथ हमे हुआ ना हासिल खुशियां सूली चढ़ी

काम आते रहे जिनके सदा फिक्र हमारी उनको भी नहीं
पत्थरों के बुत बने सब जताते रहे हम काबिल ही नहीं

टूट जाता है हौसला भी अंधे बहरों से अड़ते अड़ते
ताउम्र रहे कीकर पर बैठे अब भी नहीं कोई देता उतरने

ढलने लगी हैं उम्र भी लेकिन दोपहर ठहरी हुई है जीवन मे
कड़कती कड़की का कोई नहीं साथी चुपके से कहा अंधेरे ने 
बबली गुर्जर

©Babli Gurjar
  कड़कती कड़की
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Babli Gurjar

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कड़कती कड़की #शायरी

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