" गर यूं तारीखों के बदलने से,साल नए होते, शायद इस दुनिया के तब , अंजाम नए होते । बेहिसाब शराब, होठों से गुजरी होगी जश्न में, काश कुछ खाली पेटों में भी,निवाले गए होते । बस्ती के बच्चे, आतिशबाज़ी से बहल जाते हैं, खूब होता गर कुछ पकवान,उनके घर बने होते । जश्न के उठते धुएं को, दुनिया पाक समझती है, क़यामत आ जाती गर गरीब से,पटाखे जले होते । कहां ढूंडने चल दिए,असबाब-ए-सुकून बाज़ार में, एक बार तो मेरे साथ,मुफलिस बस्ती में चले होते "... - Author Vivek Sharma #yqbaba #yqdidi #yqquotes #yqtales #newyear #happynewyear #2020 #newyear2020