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कब बदले स्वर आहट भी नहीं...... और अहाते से कोई

कब बदले स्वर
आहट भी नहीं...... 
और 
अहाते से 
कोई ले उड़ा संवेदना । 

यकीनन, 
ये स्वर उसके ही रहे होंगे
जिसने वेग दिये संवेगों के । 
दिये उतार-चढाव संवेदों के । 
भंगिमायें वही रहीं 
जो पहले कभी थी ही नहीं । 
जिसने भौंचक किया नहीं । 

आह..... 
ये कौन नीड़ बसा गया 
बसे नीड़ उजाड़कर  ! 
ये कौन धूल हटा गया 
चट्टानी धूल उखाड़कर  ! 
बेचैनी रही अशेष । 

सुनी सब कानों ने 
बात एक ही...... 
कि एक आदम की औलाद हैं हम
अपने हितों के ही फौलाद हैं हम
कोई एक बात ही 
मुकम्मल है हम सभी में
उसी के ...... 
हिरण्यकश्यप और प्रहलाद हैं हम । 

और एक बात 
जो हर समझ को समझाई गई
 वही तो रखे थी अनेक
और एक रोज कर दिया एलान..... 
हर टुकड़ा टुकड़ा आदमी औरत को
एक सूत्र में बांधकर  , 
बहला दिया बच्चे सा 
दे स्वप्निल सुर्ख गुलाब 
अन्न,अमन,रोशनी,रोजगार 
.....अनगिन सुविधाओं के ।
कब बदले स्वर
आहट भी नहीं...... 
और 
अहाते से 
कोई ले उड़ा संवेदना । 

यकीनन, 
ये स्वर उसके ही रहे होंगे
जिसने वेग दिये संवेगों के । 
दिये उतार-चढाव संवेदों के । 
भंगिमायें वही रहीं 
जो पहले कभी थी ही नहीं । 
जिसने भौंचक किया नहीं । 

आह..... 
ये कौन नीड़ बसा गया 
बसे नीड़ उजाड़कर  ! 
ये कौन धूल हटा गया 
चट्टानी धूल उखाड़कर  ! 
बेचैनी रही अशेष । 

सुनी सब कानों ने 
बात एक ही...... 
कि एक आदम की औलाद हैं हम
अपने हितों के ही फौलाद हैं हम
कोई एक बात ही 
मुकम्मल है हम सभी में
उसी के ...... 
हिरण्यकश्यप और प्रहलाद हैं हम । 

और एक बात 
जो हर समझ को समझाई गई
 वही तो रखे थी अनेक
और एक रोज कर दिया एलान..... 
हर टुकड़ा टुकड़ा आदमी औरत को
एक सूत्र में बांधकर  , 
बहला दिया बच्चे सा 
दे स्वप्निल सुर्ख गुलाब 
अन्न,अमन,रोशनी,रोजगार 
.....अनगिन सुविधाओं के ।