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White अनजान शहर के गलियारों में,दाएं बाएं मुड़ती ग

White अनजान शहर के गलियारों में,दाएं बाएं मुड़ती गलियां,जाने क्यों ?जानी पहचानी लगती हैं।

सुनसान,शांत,शीतल तुषार में भीगे राहों में बिखरे काटें,जाने क्यों ?ना चुभते हैं।

हृदय वेदना से स्पंदित उष्ण वायु से जनित ताप कोरी कल्पित रह गई ख्वाब को जाने क्यों? आज आह में भरते हैं।

ठहर गया श्वासो का चलना,आंख अश्रु से भीग़  गया,फिर भी ना जाने क्यों? लोग हमें आवारा यूं कहते हैं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र सुनसान
White अनजान शहर के गलियारों में,दाएं बाएं मुड़ती गलियां,जाने क्यों ?जानी पहचानी लगती हैं।

सुनसान,शांत,शीतल तुषार में भीगे राहों में बिखरे काटें,जाने क्यों ?ना चुभते हैं।

हृदय वेदना से स्पंदित उष्ण वायु से जनित ताप कोरी कल्पित रह गई ख्वाब को जाने क्यों? आज आह में भरते हैं।

ठहर गया श्वासो का चलना,आंख अश्रु से भीग़  गया,फिर भी ना जाने क्यों? लोग हमें आवारा यूं कहते हैं।

©डॉ.अजय कुमार मिश्र सुनसान