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सँभलना जो सिखातें हैं यहाँ बापू मिले मुझको । बिठाक

सँभलना जो सिखातें हैं यहाँ बापू मिले मुझको ।
बिठाकर काँध पर घूमें वही चाचू मिले मुझको ।।१

जहाँ में ज्ञान सच्चा जो सिखाये सीख लेता हूँ ।
मुझे जो राह पे लाये वही अब गुरु मिले मुझको ।।२

तमन्ना आखिरी अब ये कहीं मैं तीर्थ पे जाऊँ ।
वहाँ भगवान के ही रूप में साधू मिले मुझको ।।३

बहुत ही द्वंद्व करता आज आत्मा से सुनो अपनी ।
दिखाई जो नही देता उसी की बू मिले मुझको ।।४

कभी जो बाग में बैठे कोयलिया खूब गाती थी ।
लगाता बाग मैं हूँ खूब की वह कू मिले मुझको ।।५

कभी देखा इधर मुड़कर खत्म क्यों हो रहे रिश्ते ।
चलो मिलकर सँभाले हम कि फिर नानू मिले मुझको।।६

जगाती थी हमें पहले प्रखर आकर जो आँगन में ।
वही चिडियों कि चूँ चूँ फिर दुवाएँ दूँ मिले मुझको ।।७

१८/१०/२०२२     -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR #Childhood सँभलना जो सिखातें हैं यहाँ बापू मिले मुझको ।
बिठाकर काँध पर घूमें वही चाचू मिले मुझको ।।१

जहाँ में ज्ञान सच्चा जो सिखाये सीख लेता हूँ ।
मुझे जो राह पे लाये वही अब गुरु मिले मुझको ।।२

तमन्ना आखिरी अब ये कहीं मैं तीर्थ पे जाऊँ ।
वहाँ भगवान के ही रूप में साधू मिले मुझको ।।३
सँभलना जो सिखातें हैं यहाँ बापू मिले मुझको ।
बिठाकर काँध पर घूमें वही चाचू मिले मुझको ।।१

जहाँ में ज्ञान सच्चा जो सिखाये सीख लेता हूँ ।
मुझे जो राह पे लाये वही अब गुरु मिले मुझको ।।२

तमन्ना आखिरी अब ये कहीं मैं तीर्थ पे जाऊँ ।
वहाँ भगवान के ही रूप में साधू मिले मुझको ।।३

बहुत ही द्वंद्व करता आज आत्मा से सुनो अपनी ।
दिखाई जो नही देता उसी की बू मिले मुझको ।।४

कभी जो बाग में बैठे कोयलिया खूब गाती थी ।
लगाता बाग मैं हूँ खूब की वह कू मिले मुझको ।।५

कभी देखा इधर मुड़कर खत्म क्यों हो रहे रिश्ते ।
चलो मिलकर सँभाले हम कि फिर नानू मिले मुझको।।६

जगाती थी हमें पहले प्रखर आकर जो आँगन में ।
वही चिडियों कि चूँ चूँ फिर दुवाएँ दूँ मिले मुझको ।।७

१८/१०/२०२२     -      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR #Childhood सँभलना जो सिखातें हैं यहाँ बापू मिले मुझको ।
बिठाकर काँध पर घूमें वही चाचू मिले मुझको ।।१

जहाँ में ज्ञान सच्चा जो सिखाये सीख लेता हूँ ।
मुझे जो राह पे लाये वही अब गुरु मिले मुझको ।।२

तमन्ना आखिरी अब ये कहीं मैं तीर्थ पे जाऊँ ।
वहाँ भगवान के ही रूप में साधू मिले मुझको ।।३