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रस्म-ए-संवरना अब निभाऊं किस के लिए, ये बिखरे हुए

रस्म-ए-संवरना अब निभाऊं किस के लिए, 
ये बिखरे हुए बेतरतीब खम मेरे सजाऊं किसके लिए। 

वो छीन कर ले गया है मेरे होंठो से हंसी , 
अब झूठ-मूठ का सही मगर मुस्कुराऊं किसके लिए। 

वो तो शहर छोड़ कर मेरा, कब का जा चुका है, 
नए कपड़े पहनकर  "शमी", महाफिलों में जाऊं किसके लिए।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
  #रस्म-ए-संवारना

#रस्म-ए-संवारना

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