मुश्किलो में घिरा के खुद को,सुकून का मंजर देखता है।
दिल भी कितना पागल है,ख्वाबो में घर देखता है।।
दुनिया इतनी हसीं भी नही, जो तेरी नजरो में बसी है।
यहाँ आदमी को आदमी लिए, खून-ऐ-खंजर देखता है।।
पेड़ सारे कट गये घोसले जो, संभाले खड़े थे।
लौट कर परिंदा वतन में, कहाँ है अपना घर देखता है।। #कविता#shivanihiya#शिवानी_सोलंकी_चौहान