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मुश्किलो में घिरा के खुद को,सुकून का मंजर देखता है

मुश्किलो में घिरा के खुद को,सुकून का मंजर देखता है।
दिल भी कितना पागल है,ख्वाबो में घर देखता है।।

दुनिया इतनी हसीं भी नही, जो तेरी नजरो में बसी है।
यहाँ आदमी को आदमी लिए, खून-ऐ-खंजर देखता है।।

पेड़ सारे कट गये घोसले जो, संभाले खड़े थे।
लौट कर परिंदा वतन में, कहाँ है अपना घर देखता है।।

खेल छूटे, शोक छीने,नन्नी आँखो से लुटा बचपन।
मासूमियत पर हर कोई, जिम्मेदारियों का असर देखता है।

लुटता है हर कोई यहाँ, अपने मतलब की चाह में,
लूटने वाला अब कहाँ, यहाँ मजहब-ऐ-धरम देखता है।।

तुम्ही ने संभाल रखी है, वेहसियत को खुद तक।
देखने वाला तुम्हारे घरो को, कोठे की नज़र  देखता है।।

वो बेचकर आबरू को, जिम्मेदारियां निभा रही थी।
खरीदने वाला मजबूरी नही, बिका हुआ  जिस्म देखता है।।

शहद बनाने में मधुमख्खियों ने, गुजर दी ज़िंदगी अपनी।
तोड़ने वाला  तो "हिया" ,बस छत्ते का वजन देखता है।।

#शिवानी_सोलंकी_चौहान ✍🙏🙏🙏🙏

©💖 #ShivaniHiya 💖 मुश्किलो में घिरा के खुद को,सुकून का मंजर देखता है।
दिल भी कितना पागल है,ख्वाबो में घर देखता है।।

दुनिया इतनी हसीं भी नही, जो तेरी नजरो में बसी है।
यहाँ आदमी को आदमी लिए, खून-ऐ-खंजर देखता है।।

पेड़ सारे कट गये घोसले जो, संभाले खड़े थे।
लौट कर परिंदा वतन में, कहाँ है अपना घर देखता है।।
मुश्किलो में घिरा के खुद को,सुकून का मंजर देखता है।
दिल भी कितना पागल है,ख्वाबो में घर देखता है।।

दुनिया इतनी हसीं भी नही, जो तेरी नजरो में बसी है।
यहाँ आदमी को आदमी लिए, खून-ऐ-खंजर देखता है।।

पेड़ सारे कट गये घोसले जो, संभाले खड़े थे।
लौट कर परिंदा वतन में, कहाँ है अपना घर देखता है।।

खेल छूटे, शोक छीने,नन्नी आँखो से लुटा बचपन।
मासूमियत पर हर कोई, जिम्मेदारियों का असर देखता है।

लुटता है हर कोई यहाँ, अपने मतलब की चाह में,
लूटने वाला अब कहाँ, यहाँ मजहब-ऐ-धरम देखता है।।

तुम्ही ने संभाल रखी है, वेहसियत को खुद तक।
देखने वाला तुम्हारे घरो को, कोठे की नज़र  देखता है।।

वो बेचकर आबरू को, जिम्मेदारियां निभा रही थी।
खरीदने वाला मजबूरी नही, बिका हुआ  जिस्म देखता है।।

शहद बनाने में मधुमख्खियों ने, गुजर दी ज़िंदगी अपनी।
तोड़ने वाला  तो "हिया" ,बस छत्ते का वजन देखता है।।

#शिवानी_सोलंकी_चौहान ✍🙏🙏🙏🙏

©💖 #ShivaniHiya 💖 मुश्किलो में घिरा के खुद को,सुकून का मंजर देखता है।
दिल भी कितना पागल है,ख्वाबो में घर देखता है।।

दुनिया इतनी हसीं भी नही, जो तेरी नजरो में बसी है।
यहाँ आदमी को आदमी लिए, खून-ऐ-खंजर देखता है।।

पेड़ सारे कट गये घोसले जो, संभाले खड़े थे।
लौट कर परिंदा वतन में, कहाँ है अपना घर देखता है।।

मुश्किलो में घिरा के खुद को,सुकून का मंजर देखता है। दिल भी कितना पागल है,ख्वाबो में घर देखता है।। दुनिया इतनी हसीं भी नही, जो तेरी नजरो में बसी है। यहाँ आदमी को आदमी लिए, खून-ऐ-खंजर देखता है।। पेड़ सारे कट गये घोसले जो, संभाले खड़े थे। लौट कर परिंदा वतन में, कहाँ है अपना घर देखता है।। #कविता #shivanihiya #शिवानी_सोलंकी_चौहान