इक, बरसती शाम पर, मन के, झरोखे से झाँकती वो, बैठी थी, उलझी लटों को सँवारने, यादों की इक, टूटी दंदों वाली कंघी से, कि तभी, वक्त की आँधी चली, उम्मीद की दहलीज पर टँगा, विश्वास का परदा, फटकर चीथड़े में लहराने लगा, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सोलह_आने_स्त्री इक, बरसती शाम पर, मन के, झरोखे से झाँकती वो,