शहर शहर दर्पण दर्पण करती नारी देख अपना सुन्दंर चेहरा सजती सवरती श्रृंगार करती नारी गांव गांव इट्ठलाती बलखाती सर पर गगरीया पकड़े नारी चलती चलती जाए गांव के गलियारो मे पनघट पानी,भरने नारी -अविनाश दुबे । शहर/गांव