White "नज़रें उठाईं तो हर मोड़ पर कुछ अनकहा सा था, जैसे कोई रहगुज़र मुन्तज़िर था, लेकिन ग़मों से भरा। हर सांस थमने को थी, हर धड़कन में ख़ामोशी बसी, जैसे दिल के किसी कोने में सन्नाटा मुन्तज़िर था।" "ख़्वाबों के आईने में तसव्वुर ख़ामोश हुआ, उसकी आवाज़, हर पल में एक जज़्बा मुन्तज़िर था। हर इक चराग़ जलते हुए बुझने को था तन्हाई में, शायद किसी और सफ़र का ख्वाब मुन्तज़िर था।" "उसे देखने की आरज़ू मेरी आँखों में सिमट कर रह गई, जैसे हर पल में कोई ख्वाहिश, मुन्तज़िर थी। वो पास था, फिर भी अपने ख्वाबों में खो गया, जैसे दिल की धड़कनों में कोई नया सफ़र मुन्तज़िर था।" ©नवनीत ठाकुर #नवनीत_ठाकुर