#OpenPoetry मन चला मन तू क्यूं मचल रहा है खोने की जल्दी में तू क्यूं चहक रहा है माना की तुझको जीने की आजादी है हर जगह तेरी ही मनमानी है फिर भी संवरने के दिनों में तू क्यूं बहक रहा है? मन चला मन....... तू जानता है खुशबुएं सिर्फ तुझको भ्रमित करती हैं नींद आगोश में लेकर तुझे पथभ्रष्ट करती हैं ये सुंदरता सिर्फ एक दिखावा सी है आज है कल नहीं मीलों दूर की भी ये फिर भी तू सुखी धरती पे क्यूं फिसल रहा है एक कोने में पर भीड़ में तू क्यूं गिर रहा है? मन चला मन....... तू जानता है कि मौसम बदलते रहते हैं हरे बागान भी पतझड़ में झड़ जाते हैं सुबह पत्तियों की सुंदर सी ओंस की बूंदें धूप आते ही हवा में उड़ जाती हैं वो चमक वो सुनहरा पन शाम होते ही हवा कहीं खो जाते हैं फिर भी तू क्यूं इसमें उलझ रहा है? मन चला मन....... तू जानता है अपनी मंजिल को जनता है उस मंजिल के रास्ते को कारवां भी तेरा तेरे साथ ही मै है चमकती सी सुनहरी रोशनी भी तेरे पथ में है फिर भी तू अंधियारे गलियारों में क्या खोजता है फिर भी तू अंधेरे गलियारों में क्यूं भटकता है? मन चला मन तू क्यूं मचलता है खोने की जल्दी में तू क्यूं चहक रहा है...….? #OpenPoetry