बंसी सब सुर त्यागे है, एक ही सुर में बाजे है हाल न पूछो मोहन का, सब कुछ राधे राधे है ज़ुबैर अली ताबिश ये हवा कैसे उड़ा ले गई आँचल मेरा यूँ सताने की तो आदत मिरे घनश्याम की थी परवीन शाकिर जिस की हर शाख़ पे राधाएँ मचलती होंगी देखना कृष्ण उसी पेड़ के नीचे होंगे बेकल उत्साही कहे जाती है ऊधौ से ये रो रो कर के हर गोपी बता अब कब सताएँगे मुझे मिरे किशन आख़िर अदनान हामिद रौशनी ऐसी अजब थी रंग-भूमी की 'नसीम' हो गए किरदार मुदग़म कृष्ण भी राधा लगा इफ्तिखार नसीम न किसी गीत से रग़बत न शग़फ़ नग़्मों से सिर्फ़ मीरा के भजन सुनता है कान्हा दिल का लकी फारूकी हसरत कल GITANJALI ने एक बेहतरीन लेख पोस्ट किया था, उसको पढ़ते हुए मन में कई विचार आए, कई शेर याद आएं । तो सोचा आज कुछ सांझा करता हूं आप सब से। इंसान का बंटवारा सरहद, धर्म, जात, भाषा, रूप रंग आदि के आधार पर सैंकड़ों बार हुआ है मगर शायद ही कभी साहित्य का बंटवारा हुआ हो, क्योंकि साहित्य तो सब की सांझी विरासत है. ये सब लिखते हुए मन में दो विचारधाराएं समांतर चल रही है। दोनो पे बात करता हूं मगर क्योंकि आज जन्माष्टमी है तो पहले श्री कृष्ण पे बात करते है श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं।उनके जितने नाम है, उतने ही अलग अलग व्यक्तित्व। वे मां के सामने रूठने की लीलाएं करने वाले बालकृष्ण हैं।उन्होंने जो बचपन जिया तो ऐसा कि भारत की हर मां लाड़ में अपने बच्चे, कान्हा बुलाती है, जब उन्होंने प्रेम किया तो ऐसा किया कि मिसाल बना, कृष्ण अकेले ऐसे युग पुरुष है जिनसे दो अलग महिलाओं ने अलग युगों में असीम प्रेम किया द्वापर में राधा और कलयुग में मीरा ने । जिन्होंने जब लड़ाई की तो फिर ऐसी की,अक्षौहिणी सेना भी उनके रण कौशल से हारी,दोस्ती ऐसी निभाई की हम आज भी कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल देते है, द्रौपदी और श्री कृष्ण जो दोस्ती थी उसकी वो भी बेमिसाल थी,द्रौपदी उनको सखा और कृष्ण भी उनकी सखी कह के बुलाते थे । जब योगेश्वर कृष्ण बन के ज्ञान दिया तो गीता के रूप में ऐसा सागर दिया जो कभी सूखेगा नहीं।बलराम जी की इच्छा के विरुद्ध जाने का साहस श्री कृष्ण कर सकते थे अपनी बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए भी वही कह सकते थे। श्री कृष्ण पे शायद अपने सीमत ज्ञान से कितना भी लिखूं कम ही होगा। अब कुछ और बात करते है अगर आपने उपर जो शेर पढ़े है और उनके शायर के नाम पढ़े है जिन्होंने उनको लिखा है तो शायद कुछ विरोधाभास पैदा हो रहा हो, बहुत से ऐसे शेर है जो एक मुसलमान शायरों ने श्री कृष्ण ,राधा जी पर कहे, और हर शेर एक से बढ़ कर एक है। जैसे की कहा कविता, शायरी का कोई धर्म नहीं होता ये बंटवारे तो हम ही करते है । अब ज़रा नीचे लिखे अशआर पे गौर फरमाएं