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मैं जब भी सोचता हूं मैं जब भी सोचता हूं, तो बात स

मैं जब भी सोचता हूं

मैं जब भी सोचता हूं,
तो बात समझ से परे लगती है।

कैसे अपनी ज़रूरत पे ज़िन्दगी, दो
 दिलों को एक ही खूंटी से बांध के रख देती है।

बांध के हाथ बिना डोरी के,
 पलक झपकते ही, दो से चार भी कर देती है।

बिना कोई शब्द किए ही मोहब्बत,
 रूप और रंग से,अपना जादू बिखेर देती है।

ईट और मिट्टी के घरोंदे को, देखते 
ही देखते वीरान से गुलशन में बदल देती है। 

ये करिश्मा नहीं तो और क्या है
चंद हाथों की लकीरों से, क़िस्मत को बदल देती है।

©Anuj Ray
  #मैं जब भी सोचता हूं....
anujray7003

Anuj Ray

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#मैं जब भी सोचता हूं.... #समाज

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