भावनाओं के सागर में डूबती गहरे उतर देखा है मैंने ठहरा हुआ सा मन का वो बसंत उमंगो के आकाश में रक्तिम पलाश से लगी आग जो अब तक बुझी नहीं सौरभ से परिपूर्ण जागृत शिखा सी आत्मा का अनुताप पलकों पर सुन्दर कोमल सपनों का बसेरा कई अभिलाषाएँ एक खिंचाव .. उत्ताल तंरग पर नाचती संध्या हृदय के गीतो में समाहित सुरभित सुगंध झोंका पवन का झड़ते पात संग भावों के झड़ते पनपते रंग मन के झरोखों को खोलता हुआ सा एक पुकार और अबुझ फागुन का शोर बस तुम्हारी ही ओर .. ©shalini jha भावनाओं के सागर में डूबती गहरे उतर देखा है मैंने ठहरा हुआ सा मन का वो बसंत उमंगो के आकाश में रक्तिम पलाश से लगी आग जो अब तक बुझी नहीं