पाने की चाहत न खोने का डर, तो हो जाती सब मिन्नतें बेअसर, परवाह भी कोई करता न फिर, जरूरत न होती हो पूरी अगर, रहेगी नहीं चाह मंज़िल की जब, चलेगा भला कौन मुश्क़िल डगर, केवट बिना नाव का हाल भी, भटकता फिरेगा लहर-दर-लहर, है उपहार जीवन पता ना जिसे, करेगा नहीं ज़िन्दगी की कदर, माया को ही मान बैठा है सच, तो डूबेगी नौका फँसेगा भँवर, सफलता भी मिलती है गुंजन तभी, नहीं छोड़ते हैं जो कोई कसर, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #पाने की चाहत न खोने का डर#