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पीड़ा क़े भी कितने अजीब से रंग होते हैँ न जाने

पीड़ा  क़े भी  कितने  अजीब से  रंग
होते हैँ
न जाने  कितनी बार ये परिभाशित  भी हुई
लेकिन हर बार वो वांछित  संदेश  देने मेंअसमर्थ    रही है
कई बार  वो किसी क़े कंधों  पर  सर
रख कर   रो  भी लेती है
अपनी व्यथा की  कथा सुनाते  सुनाते  पूरी
रात  भी  बीत  जाती है  इसके  बावजूद  उसकी
व्यथा  का  दंश  कम  नहीं  हो पाता
कई बार   वो  करती है कोशिश  खुदकशी की
उसमे भी वो   कामयाब हो नहीं पाती  है

©Parasram Arora पीड़ा  का  दंश
पीड़ा  क़े भी  कितने  अजीब से  रंग
होते हैँ
न जाने  कितनी बार ये परिभाशित  भी हुई
लेकिन हर बार वो वांछित  संदेश  देने मेंअसमर्थ    रही है
कई बार  वो किसी क़े कंधों  पर  सर
रख कर   रो  भी लेती है
अपनी व्यथा की  कथा सुनाते  सुनाते  पूरी
रात  भी  बीत  जाती है  इसके  बावजूद  उसकी
व्यथा  का  दंश  कम  नहीं  हो पाता
कई बार   वो  करती है कोशिश  खुदकशी की
उसमे भी वो   कामयाब हो नहीं पाती  है

©Parasram Arora पीड़ा  का  दंश

पीड़ा का दंश