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पता नही लोगो को हसने हँसाने से परहेज़ क्यों है गल

पता नही लोगो को
हसने हँसाने से  परहेज़ क्यों है

गलती से कोई  हँस भी लेता है  तो वो हँसी 
उसके.
भीतर से  बाहर नही आती
इसीलिए वो हंसी उबाउ होती है   खोखली  होती है  और ज्यादा देर तक वो . टिकती नही है
शायद हमारे वी आई  पी  कल्चर में  इस प्रकार की
हंसी को मेनर्स  या अेटिकेट  का हिस्सा बना दिया गया है
ऐसी हंसी हमारी  चेतना का हिस्सा न होकर ये  एक तरह की  पोती हुई  हंसी है ज़ो हमारे चेहरे के  हाव भाव को
संदिग्ध   बनाती  है

©Parasram Arora हंसी  और मैनर्स.....
पता नही लोगो को
हसने हँसाने से  परहेज़ क्यों है

गलती से कोई  हँस भी लेता है  तो वो हँसी 
उसके.
भीतर से  बाहर नही आती
इसीलिए वो हंसी उबाउ होती है   खोखली  होती है  और ज्यादा देर तक वो . टिकती नही है
शायद हमारे वी आई  पी  कल्चर में  इस प्रकार की
हंसी को मेनर्स  या अेटिकेट  का हिस्सा बना दिया गया है
ऐसी हंसी हमारी  चेतना का हिस्सा न होकर ये  एक तरह की  पोती हुई  हंसी है ज़ो हमारे चेहरे के  हाव भाव को
संदिग्ध   बनाती  है

©Parasram Arora हंसी  और मैनर्स.....

हंसी और मैनर्स.....