Nojoto: Largest Storytelling Platform

कुण्डलिया :-  जाते देखो माघ के , आता फागुन झूम ।

कुण्डलिया :- 

जाते देखो माघ के , आता फागुन झूम ।
रंग लगाती राधिका , कान्हा माथा चूम ।।
कान्हा माथा चूम , कहें ये प्रीत हमारी ।
समझोगे कब आप , सताते क्यों बनवारी ।।
सुन गोपी आवाज , दौड़ तट यमुना आते ।
रखो प्रीति की लाज ,  पुकारूँ तुम आ जाते ।।

  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- 


जाते देखो माघ के , आता फागुन झूम ।

रंग लगाती राधिका , कान्हा माथा चूम ।।

कान्हा माथा चूम , कहें ये प्रीत हमारी ।
कुण्डलिया :- 

जाते देखो माघ के , आता फागुन झूम ।
रंग लगाती राधिका , कान्हा माथा चूम ।।
कान्हा माथा चूम , कहें ये प्रीत हमारी ।
समझोगे कब आप , सताते क्यों बनवारी ।।
सुन गोपी आवाज , दौड़ तट यमुना आते ।
रखो प्रीति की लाज ,  पुकारूँ तुम आ जाते ।।

  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- 


जाते देखो माघ के , आता फागुन झूम ।

रंग लगाती राधिका , कान्हा माथा चूम ।।

कान्हा माथा चूम , कहें ये प्रीत हमारी ।

कुण्डलिया :-  जाते देखो माघ के , आता फागुन झूम । रंग लगाती राधिका , कान्हा माथा चूम ।। कान्हा माथा चूम , कहें ये प्रीत हमारी । #कविता