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अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशह

अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे,
ज़िन्दगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे,
अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे।

राहत इंदौरी

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