सुनो, क्या रफ़ू का मतलब जानते हो तुम..??
जब कोई कपड़ा थोड़ा जल या फट जाता है, या उसमें कोई छेद हो जाता है तो रफ़ूगर उस जले या फटे कपड़े के छोटे से छेद में धागे भरकर बराबर कर देता है। सीधे शब्दों में कहुँ तो उस छेद को महीन धागों से भर देता है, और उसे लगभग पहले जैसा कर देता है।
कितना आसान होता है ना उस कटी-फटी जगह पर धागे की एक परत चढ़ाना मगर कितना मुश्किल होता है जब यही परत ज़िंदगी चाहती है।
जब ख़ुशियों में जगह-जगह छोटे-छोटे छेद हो जाते हैं तो भद्दी लगने लगती है। नीरसता और उदासीनता से घिरी हुई ज़िंदगी हर जगह से खरोंच खा कर जब सड़-गल जाती है तो ऐसा लगता है जैसे किसी ख़ूबसूरत गहरे समुन्दर से निकलकर वह केवल बदसूरत और पायाब हो गई है। ऐसी ज़िंदगी में कोई रस या आनंद आता भी है तो छेद से निकल कहीं ओझल हो जाता है।
ऐसी ज़िंदगी को रफ़ू की ज़रूरत होती है । ज़रुरत होती है एक ऐसे रफ़ूगर की जो ऐसी बदसूरत हो चुकी ज़िंदगी के छेद को अपने सहारे से भर दे। मोहब्बत के महीन धागों से उसकी ख़ूबसूरती को बरकरार रखे। ज़िंदगी की पायाब ज़मीन को समुंदर बना दे।
सबकी ज़िंदगी में एक रफ़ूगर तो होना चाहिए..
है ना??
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