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कहने को जीवनसंगिनी है, सत्य कहूँ तो गृहिणी मात्र ह

कहने को जीवनसंगिनी है,
सत्य कहूँ तो गृहिणी मात्र है,
पूरे घर को धारण करती है,
धरणी,सब की ऋणपात्र है।
रीतियों का अनुगमन करती है,
घर की देहरी तक सीमित रहती है।

                         वो दीवारों को घर बनाती है,सजाती है,
                         अपनी दुनिया में तुमको बसाती है,
                         तुम्हारे लिए,एक कर्तव्य बन जाती है।

अपनी कोई बात लिए,
जब तुम्हारे समक्षआती है,
तुम्हें अपने जीवन की,भूली
हर ज़िम्मेदारी,हर प्यारी नारी,
उसी क्षण याद आ जाती है।  यूँ तो उद्भव और सृजन काल से ही व्यक्ति के जीवन में नारी की उपस्थिति होती है।नाल कटने से गृहस्थी बसने तक स्त्री के विविध रंग-रूप,जीवन और मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं।एक नवयुवती अपना सब छोड़कर,बस कुछ उम्मीद लिए पुरूष के जीवन में, अपरिचित-सी प्रवेश करती है।जिस क्षण निराश होती है, कुछ प्रश्नात्मक,आलोचनात्मक विचार में कुछ क्षण अवश्य ही डूबती है।निश्चय ही यह आजीवन सत्य नहीं,
फिर भी यह किसी एक क्षण हर अर्धांगिनी के मन की बात है,जो या तो वह कह नही पायी,या आप सुन नहीं पाए। .. चर्चा थोड़ी लंबी है, इसलिए
कहने को जीवनसंगिनी है,
सत्य कहूँ तो गृहिणी मात्र है,
पूरे घर को धारण करती है,
धरणी,सब की ऋणपात्र है।
रीतियों का अनुगमन करती है,
घर की देहरी तक सीमित रहती है।

                         वो दीवारों को घर बनाती है,सजाती है,
                         अपनी दुनिया में तुमको बसाती है,
                         तुम्हारे लिए,एक कर्तव्य बन जाती है।

अपनी कोई बात लिए,
जब तुम्हारे समक्षआती है,
तुम्हें अपने जीवन की,भूली
हर ज़िम्मेदारी,हर प्यारी नारी,
उसी क्षण याद आ जाती है।  यूँ तो उद्भव और सृजन काल से ही व्यक्ति के जीवन में नारी की उपस्थिति होती है।नाल कटने से गृहस्थी बसने तक स्त्री के विविध रंग-रूप,जीवन और मानस पटल पर अंकित हो जाते हैं।एक नवयुवती अपना सब छोड़कर,बस कुछ उम्मीद लिए पुरूष के जीवन में, अपरिचित-सी प्रवेश करती है।जिस क्षण निराश होती है, कुछ प्रश्नात्मक,आलोचनात्मक विचार में कुछ क्षण अवश्य ही डूबती है।निश्चय ही यह आजीवन सत्य नहीं,
फिर भी यह किसी एक क्षण हर अर्धांगिनी के मन की बात है,जो या तो वह कह नही पायी,या आप सुन नहीं पाए। .. चर्चा थोड़ी लंबी है, इसलिए