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#बेबाकबोल कैसी आग में धधक रही है दुनिया ना ताप

#बेबाकबोल 

कैसी आग में धधक रही है दुनिया
ना   ताप    लगे   न   धुआं   दिखे
जब  प्रतिष्ठा जलकर खाक हो गई
तब  शमशान  में फैली राख दिखे।

मशहूर होने  की चाहत  में बेटियां
जीवन    का    मूल   भूल    बैठी
नाच   नाच   कर   रिल्स   बनाती
बेटियां अपनी  अस्मत  गवा  बैठी।

नाच   न    जाने    आंगन     टेढ़ा
वदन!   वस्त्रहीन      हो       गया
जब  चवन्नी  न  मिली  खैरात   में
गुरुर    मिट्टी     में     मिल    गया।

नृत्य  नहीं  अब   तो  नाच हो  रहा
जग में परंपरा से खिलवाड़ हो रहा
इंटरनेट  का   जमाना  क्या  आया
हर घुंघट बेनकाब  सरेआम हो रहा।

     मौलिक रचना
✍️गुड़िया तिवारी

©गुड़िया तिवारी
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