Unsplash इश्क़ की नादानियां सहना तो वक़्त को ही है, छुरी उंगली को या उंगली छुरी को, बहना तो रक्त को ही है। दिल के अरमानों को खामोशी से कुचल दिया, पर दर्द का बोझ उठाना तो सब्र को ही है। वो चलते-चलते राह में छोड़ गए, अब तन्हा सफर तय करना तो कदम को ही है। इश्क़ के दांव-पेंच समझे नहीं कभी, जीत हो या हार, ये सहना तो दिल को ही है। ©theABHAYSINGH_BIPIN #lovelife इश्क़ की नादानियां सहना तो वक़्त को ही है, छुरी उंगली को या उंगली छुरी को, बहना तो रक्त को ही है। दिल के अरमानों को खामोशी से कुचल दिया, पर दर्द का बोझ उठाना तो सब्र को ही है। वो चलते-चलते राह में छोड़ गए,