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अब रात के अंधेरे में, देखा जब गलियारों में। वक्त प

अब रात के अंधेरे में, देखा जब गलियारों में।
वक्त पर पसरा सन्नाटा था, अब कोई न आता, ना कोई जाता था।

जब पूछा रात ने सन्नाटे को,
ए मेरे यार यह बता, तू साथी तो  मेरा है।
पर क्या आजकल, साथी तू  दिन का भी हुआ  है।
बता !! तूझे दिन के उजालों में भी पसर कर अब कैसा लगा है।
आदमी अब इन दिनों, दिन में जग कर भी सोता हुआ लगता है। दिन में जग कर भी सोता हुआ लगता है।
कोरोना का अंधियारा रात दिन सब एक कर गया।

जो पाया था इतने दिनों के दर्मिया वो सब निगल गया।
  


Deepa pareek #quaates

#Deepa 
#Poem
#Talk
#Takes
#paas
अब रात के अंधेरे में, देखा जब गलियारों में।
वक्त पर पसरा सन्नाटा था, अब कोई न आता, ना कोई जाता था।

जब पूछा रात ने सन्नाटे को,
ए मेरे यार यह बता, तू साथी तो  मेरा है।
पर क्या आजकल, साथी तू  दिन का भी हुआ  है।
बता !! तूझे दिन के उजालों में भी पसर कर अब कैसा लगा है।
आदमी अब इन दिनों, दिन में जग कर भी सोता हुआ लगता है। दिन में जग कर भी सोता हुआ लगता है।
कोरोना का अंधियारा रात दिन सब एक कर गया।

जो पाया था इतने दिनों के दर्मिया वो सब निगल गया।
  


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