सिया राम के संग में , करती बैठ विचार । विधना तेरे लेख से , दुखी देख संसार ।।१ आप रहो जब संग में , कोई नहीं अनाथ । विधना तेरे लेख से , चिंतित है रघुनाथ ।।२ देख विधाता लेखनी , झुका रहे जो माथ । वही कोशलाधीश है , मेरे दीना नाथ ।।३ हम दोनो में एक तो , बात यही है साफ । गलती चाहे जो करे , कर देतें हैं माफ ।।४ भूल हुई जो आपसे , कर बैठे हैं प्यार । जीवन तुझपे हार के , खो बैठे संसार ।।५ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सिया राम के संग में , करती बैठ विचार । विधना तेरे लेख से , दुखी देख संसार ।।१ आप रहो जब संग में , कोई नहीं अनाथ । विधना तेरे लेख से , चिंतित है रघुनाथ ।।२ देख विधाता लेखनी , झुका रहे जो माथ । वही कोशलाधीश है , मेरे दीना नाथ ।।३