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अश्रुस्नात थे नयन भरत के, थे गुंथित अति केश भरत क

अश्रुस्नात थे नयन भरत के, 
थे गुंथित अति केश भरत के।
कृष-काया, नहिं प्राण शेष थे, 
भ्रातृ-प्रेम में रत श्री भरत थे।।
             -शैलेन्द्र राजपूत

©HINDI SAHITYA SAGAR
  #UskePeechhe