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!!ग़ज़ल!! "आँखों को इन्तजार का देके हुनर चला गया, चा

!!ग़ज़ल!!
"आँखों को इन्तजार का देके हुनर चला गया,
चाहा था एक शख्स को जाने किधर चला गया। ।
~~~~~
दिन की वो महफिलें गई रातों के रतजगे गये,
कोई समेट के मेरे शाम-ओ-सहर चला गया।।
~~~~~
कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कबसे भटक रहा है दिल,
हमको भुलाके राह वो अपनी डगर चला गया।।
~~~~~
झोंका है इक बहार का रंग-ए-ख़याल यार भी,
हरसू बिखर बिखर गई खुश्बू जिधर चला गया।।
~~~~~
उसके ही दम से दिल में आज धूप, चाँदनी भी है,
दे के वो अपनी याद के शम्सो-क़मर चला गया।।।
~~~~~--शहरयार--
!!ग़ज़ल!!
"आँखों को इन्तजार का देके हुनर चला गया,
चाहा था एक शख्स को जाने किधर चला गया। ।
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दिन की वो महफिलें गई रातों के रतजगे गये,
कोई समेट के मेरे शाम-ओ-सहर चला गया।।
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कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कबसे भटक रहा है दिल,
हमको भुलाके राह वो अपनी डगर चला गया।।
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झोंका है इक बहार का रंग-ए-ख़याल यार भी,
हरसू बिखर बिखर गई खुश्बू जिधर चला गया।।
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उसके ही दम से दिल में आज धूप, चाँदनी भी है,
दे के वो अपनी याद के शम्सो-क़मर चला गया।।।
~~~~~--शहरयार--