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विद्या भूषण मिश्र

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विद्या भूषण मिश्र

मरना तो सभी को है,और दिन भी मुक़र्रर है,

हम मौत से पहले ही,जीना तो नहीं  छोड़ें.!!

--भूषण--

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विद्या भूषण मिश्र

'सम्बन्धों के ठंडे घर में'
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सम्बन्धों के ठंडे घर में 
वैसे तो सबकुछ है लेकिन 
               इतने नीचे तापमान पर 
            रक्तचाप बेहद खलता है।।
दिनचर्या कोरी दिनचर्या 
घटनायें कोरी घटनायें 
पढ़ा हुआ अख़बार उठाकर 
हम कब तक बेबस दुहरायें 
नाम मात्र को सुबह हुई है 
           कहने भर को दिन ढलता है।।
सहित ताप अनुकूलित घर में 
मौसम के प्रतिमान ढूंढते 
आधी उम्र गुज़र जाती है 
प्याले में तूफ़ान ढूंढते 
गर्म ख़ून वाला तेवर भी 
                  अब तो सिर्फ़ हाथ मलता है।।
सजे हुए दस्तरख़्वानों पर 
मरी भूख के ताने-बाने 
ठहरे हुए समय सी टेबुल 
टिकी हुई बासी मुस्कानें 
शिष्टाचार डरे नौकर सा 
                       अक्सर दबे पांव चलता है।।
-अमरनाथ श्रीवास्तव-
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विद्या भूषण मिश्र

आता है कोई मरहला सब की हयात में ;
जब हम को नज़र आती है ज़न्नत सी ये ज़मीं.!!
-भूषण-

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विद्या भूषण मिश्र

!!विनम्र श्रद्धांजलि!!
🙏🏻शत-शत नमन🙏🏻
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विद्या भूषण मिश्र

||गजल|
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आप कितना हमें सताते हैं,
रोज ही मुश्क़िलें  बढ़ाते हैं..!!
●●●
इस तरह कैसे जी सकेंगे हम,
रास्ता क्यों  नहीं बताते हैं..!!
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चाँद  को नींद आ गई शायद;
सिर्फ तारे ही झिलमिलाते हैं..!!
●●●
बावफ़ा जो नहीं कभी खुद थे,
वो  हमें  बेवफ़ा  बताते  हैं..!!
●●●
आज के आशिकों की क्या कहिये,
ख्वाब झूठे  सभी  दिखाते  हैं..!!
●●●
देश के रहनुमा हुए  कैसे ,
रेत में कश्तियाँ चलाते  हैं..!!
●●●
अाप सब होशियार रहियेगा ,
बागवाँ भी चमन जलाते  हैं..!!
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विद्या भूषण मिश्र

समंदर में मेरे ग़म का अगर क़तरा भी मिल जाए ,
उबल कर आँच से सारा समंदर सूख जायेगा.!!
-भूषण-

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विद्या भूषण मिश्र

तुम्हें अपने हुस्न पे नाज़ है,मुझे अपने इश्क़ पे है गुमाँ;
तुम आसमाँ के हो चाँद तो,मैं ज़मीं पे बैठा चकोर हूँ.!!
--भूषण--

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विद्या भूषण मिश्र

ये ज़मीं आसमाँ !
मिल रहे हैं जहाँ !
ये जहाँ छोड़ कर -
चल चलें हम वहाँ.!!
-भूषण-

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विद्या भूषण मिश्र

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
तुम जुदा क्या हुए, हम बिखरते रहे,
रोज़  जीते  रहे , रोज़  मरते  रहे..!!
साँस चलती रही, दिल धड़कता रहा,
हर घड़ी बस तुम्हें, याद करते  रहे.!!
~~~~~
--भूषण--
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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विद्या भूषण मिश्र

Tunnel भिगो कर जिस तरह साहिल को लहरें लौट हैं जाती;
भिगोने  को  मुझे  यादें  तेरी  आती  हैं ,  जाती   हैं.!!
-भूषण-

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