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#OpenPoetry क्या जीत में, क्या हार में। हूँ भयभी

#OpenPoetry   क्या जीत में, क्या हार में।
हूँ भयभीत नहीं मझधार में।
एक मुक़म्मल उनके इक़रार का,
मन में प्यास जगाए बैठा हूँ।
मैं आस लगाए बैठा हूँ।।

क्या मेले में, क्या अकेले में।
या रहूँ दुनिया के झमेले में।
एक धुँधली-सी तस्वीर उनकी ,
दिल के पास लगाए बैठा हूँ।
मैं आस लगाए बैठा हूँ।।

क्या मन्नत में, क्या ज़न्नत में।
या रहूँ मैं अपनी सल्तनत में।
एक महफ़िल उनके प्यार की 'ओम',
अपने आस-पास सजाए बैठा हूँ।
मैं आस लगाए बैठा हूँ।। #OpenPoetry
#मैं आस लगाए बैठा हूँ.. 😊💕😊
#OpenPoetry   क्या जीत में, क्या हार में।
हूँ भयभीत नहीं मझधार में।
एक मुक़म्मल उनके इक़रार का,
मन में प्यास जगाए बैठा हूँ।
मैं आस लगाए बैठा हूँ।।

क्या मेले में, क्या अकेले में।
या रहूँ दुनिया के झमेले में।
एक धुँधली-सी तस्वीर उनकी ,
दिल के पास लगाए बैठा हूँ।
मैं आस लगाए बैठा हूँ।।

क्या मन्नत में, क्या ज़न्नत में।
या रहूँ मैं अपनी सल्तनत में।
एक महफ़िल उनके प्यार की 'ओम',
अपने आस-पास सजाए बैठा हूँ।
मैं आस लगाए बैठा हूँ।। #OpenPoetry
#मैं आस लगाए बैठा हूँ.. 😊💕😊

#OpenPoetry #मैं आस लगाए बैठा हूँ.. 😊💕😊