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मनुज तुम्हें अनन्त को पाना है नयन इधर-उधर क्यूँ उल

मनुज तुम्हें अनन्त को पाना है
नयन इधर-उधर क्यूँ उलझाते हो
संसार एक माया जाल है
इसकी माया में क्यूँ पड़ते हो
संसार भटको का तम भी है
इस तम में तुम क्यूँ गुम होते हो
तुम्हें मनुजता का शिखर पाना है
तुम भटको की राह ना पकड़ो
तुमसे मनुजता की ज्योति जलनी है
तुम स्वम के हि सहायक नहीं हो
तुमसे कितने मन की आशा है
तुम छड़ में क्यूँ व्यथीत होते हो
धैर्य से तो पर्वत भी छोटा है
तुम तो पथिक अनंत के हो
पथ तो गहन भी होते है
 तुम भाग्य को क्यूँ कोशते हो
काया तुम्हारी परिश्रमिक है
बस तुम स्वपन स्मृति में रखो
अंतिम जय तुम्हारी हि है

©Kavitri mantasha sultanpuri #तुम्हें_शिखर_बनना_है (part - 2) 
#Motivational 
#motivationalpoem  
#KavitriMantashaSultanpuri
मनुज तुम्हें अनन्त को पाना है
नयन इधर-उधर क्यूँ उलझाते हो
संसार एक माया जाल है
इसकी माया में क्यूँ पड़ते हो
संसार भटको का तम भी है
इस तम में तुम क्यूँ गुम होते हो
तुम्हें मनुजता का शिखर पाना है
तुम भटको की राह ना पकड़ो
तुमसे मनुजता की ज्योति जलनी है
तुम स्वम के हि सहायक नहीं हो
तुमसे कितने मन की आशा है
तुम छड़ में क्यूँ व्यथीत होते हो
धैर्य से तो पर्वत भी छोटा है
तुम तो पथिक अनंत के हो
पथ तो गहन भी होते है
 तुम भाग्य को क्यूँ कोशते हो
काया तुम्हारी परिश्रमिक है
बस तुम स्वपन स्मृति में रखो
अंतिम जय तुम्हारी हि है

©Kavitri mantasha sultanpuri #तुम्हें_शिखर_बनना_है (part - 2) 
#Motivational 
#motivationalpoem  
#KavitriMantashaSultanpuri