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दर्मियां हिज्र और फिर वस्ल के इक बात हुई अब चाहे ग

दर्मियां हिज्र और फिर वस्ल के इक बात हुई
अब चाहे ग़म हो या खुशी सब एक बात हुई

एक मुद्दत के बाद फिर वो जब इक रोज़ मिले
गुमसुम  ही  रह   गए   न   कोई   बात  हुई ।।

-हृषिकेश शुक्ला 'ऋषि'

©Hrishikesh Shukla
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