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हर रोज झुकती हूँ मैं, छोटी-बड़ी बात, जज़्बात,और लोगो

हर रोज झुकती हूँ मैं,
छोटी-बड़ी बात, जज़्बात,और लोगों के आगे,
मज़बूरी में नहीं,न ही इसलिए कि कोई विकल्प नहीं,
न इस वजह से कि हर इंसान मुझसे बड़ा है कद-पद या उम्र में,
मैं झुकती हूँ,ताकि तनी तनी मैं ठूँठ न हो जाऊँ,
कभी झुकना चाहूँ, और झुक ही न पाऊँ,
झुकती हूँ बीते दिन की वैमनस्यता भुलाने के लिए,
झुकती हूँ खुद को याद दिलाने के लिए,
हर रोज एक छटाँक बढ़ता है अहम मेरा,
झुक कर उसके बढ़े सिरे काट देती हूँ,जड़-फुनगी छाँट देती हूँ।
झुकाती हूँ अभिमान को,आत्म-सम्मान को खड़ा रखने के लिए,
न कि पीठ को पायदान बनाकर चुपचाप सहने के लिए,
समय के साथ बढ़ जाता है ठोसपन,सोच और सिद्धांतों का,
मैं झुकती हूँ,छोटे-छोटे विचार चुन लेती हूँ,
मन और उसके हठ की, उम्र कम करती हूँ,
मस्तिष्क की जमीन अपनी नम करती हूँ,
ताकि कल,इनमें नए नस्ल के बीज समा सकूँ,
अपनी प्रकृति में परिवर्तन की पौध लगा सकूँ। हर रोज झुकती हूँ मैं,
छोटी-बड़ी बात, जज़्बात,और लोगों के आगे,
मज़बूरी में नहीं,न ही इसलिए कि कोई विकल्प नहीं,
न इस वजह से कि हर इंसान मुझसे बड़ा है कद-पद या उम्र में,
मैं झुकती हूँ,ताकि तनी तनी मैं ठूँठ न हो जाऊँ,
कभी झुकना चाहूँ, और झुक ही न पाऊँ,
झुकती हूँ बीते दिन की वैमनस्यता भुलाने के लिए,
झुकती हूँ खुद को याद दिलाने के लिए,
हर रोज झुकती हूँ मैं,
छोटी-बड़ी बात, जज़्बात,और लोगों के आगे,
मज़बूरी में नहीं,न ही इसलिए कि कोई विकल्प नहीं,
न इस वजह से कि हर इंसान मुझसे बड़ा है कद-पद या उम्र में,
मैं झुकती हूँ,ताकि तनी तनी मैं ठूँठ न हो जाऊँ,
कभी झुकना चाहूँ, और झुक ही न पाऊँ,
झुकती हूँ बीते दिन की वैमनस्यता भुलाने के लिए,
झुकती हूँ खुद को याद दिलाने के लिए,
हर रोज एक छटाँक बढ़ता है अहम मेरा,
झुक कर उसके बढ़े सिरे काट देती हूँ,जड़-फुनगी छाँट देती हूँ।
झुकाती हूँ अभिमान को,आत्म-सम्मान को खड़ा रखने के लिए,
न कि पीठ को पायदान बनाकर चुपचाप सहने के लिए,
समय के साथ बढ़ जाता है ठोसपन,सोच और सिद्धांतों का,
मैं झुकती हूँ,छोटे-छोटे विचार चुन लेती हूँ,
मन और उसके हठ की, उम्र कम करती हूँ,
मस्तिष्क की जमीन अपनी नम करती हूँ,
ताकि कल,इनमें नए नस्ल के बीज समा सकूँ,
अपनी प्रकृति में परिवर्तन की पौध लगा सकूँ। हर रोज झुकती हूँ मैं,
छोटी-बड़ी बात, जज़्बात,और लोगों के आगे,
मज़बूरी में नहीं,न ही इसलिए कि कोई विकल्प नहीं,
न इस वजह से कि हर इंसान मुझसे बड़ा है कद-पद या उम्र में,
मैं झुकती हूँ,ताकि तनी तनी मैं ठूँठ न हो जाऊँ,
कभी झुकना चाहूँ, और झुक ही न पाऊँ,
झुकती हूँ बीते दिन की वैमनस्यता भुलाने के लिए,
झुकती हूँ खुद को याद दिलाने के लिए,