किसी का हर दफ़ा झूठा दिलाशा क्या करें कोई। ज़रा सी जिंदगी में अब तमाशा क्या करें कोई।। बदन ये धूप में जलकर तो जख़्मी हो चुका है अब। मिला जो बाद में छाता वो छाता क्या करें कोई।। तुम्हें सब छोड़ जाएंगे अगर मजबूरियाँ कह दो। किसी के सामनें दिल का खुलासा क्या करें कोई।। बहुत कागज़ स्याही है बहुत कुछ लिख भी सकतें है। मग़र झूठी लिखाई से इजाफ़ा क्या करें कोई।। हमारी ही तरह के हम फ़क़त है एक दुनियां में। हमारी ही तरह होकर मुनाफ़ा क्या करें कोई।। बहुत तकलीफ होती है शरीफाना लतीफों पर। बहुत होशियारी का भी पर लबादा क्या करें कोई।। सफ़र ये कट चुका साहिल बचा भी कट ही जाएगा। चलो अब आख़िरी दम पे ये कासा क्या करें कोई।।