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और कलम चीखती है नोचती है सुफेद कागज़ को ज़हरीली स्य

और कलम चीखती है
नोचती है सुफेद कागज़ को

ज़हरीली स्याही से
जाला के अल्फाज़

पोत देती है कालख 
फिर एक बार सुफेद
समाज की पैराहन पर

काटके जुबान अपने दांतों तले
खामोश कफ़न मे दफन हो जाती है

नही चाहती है करना बया वो
जो हुवा और जो होता आया है

तुम जिसे झूठे आक्रोश से बदलना चाहते हो
और झूठी मजबूरियों का देके वास्ता भूल जाते हो



                                                                 -- गौतम

©Gautam Prajapati
  कलाम की आवाज़

कलाम की आवाज़ #कविता

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