उठे भोर में आप जो , करें बाग की सैर । स्वच्छ वायु तन को मिलें रहे रोग से बैर ।। १ करते करते योग सब , कर बैठे ब्यापार । असली मतलब योग का , भूल गया संसार ।।२ नदी ताल पोखर दिखे , बने आप नादान । हाथ पैर फिर मारिए , है यही योग स्नान ।।३ योग अगर आये नहीं , खेले बचपन खेल । वही योग सबसे बड़ा , करे युवा को फेल ।।४ गली-गली चर्चा यही , करे योग हर रोज । स्वस्थ रहे जीवन सदा , आभा पे हो ओज ।।५ प्रात समय ही योग का , देखो रहे सुयोग । योगी धरते ध्यान को , सैनिक करते योग ।।६ बचपन के वह खेल ही , बन जाते थे योग । घर से लेकर स्कूल तक , कबड्डी के प्रयोग ।। ७ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उठे भोर में आप जो , करें बाग की सैर । स्वच्छ वायु तन को मिलें रहे रोग से बैर ।। १ करते करते योग सब , कर बैठे ब्यापार । असली मतलब योग का , भूल गया संसार ।।२ नदी ताल पोखर दिखे , बने आप नादान । हाथ पैर फिर मारिए , है यही योग स्नान ।।३