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ख्वाब कोई और सजाया ना गया ख्यालों में तुमसे बसाया

ख्वाब कोई और सजाया ना गया 
ख्यालों में तुमसे बसाया ना गया
मंझधार में अटकी रही मेरी कश्ती
और तुमसे किनारे लगाया ना गया
बे मुरव्वत निकला मेरा चाहने वाला
लगाकार आग उससे बुझाया ना गया
फितरत उसकी ऐसी ही थी शायद
गले से किसी को लगाया ना गया
यूँ तो जुबां कभी खामोश नहीं होती
बस एक वही लफ्ज़ बताया ना गया 
तेरे शहर की खामोशी रास नहीं आई 
सांसो का शोर मुझसे सुनाया ना गया

©Sanjay Ni_ra_la
  # तेरे शहर की खामोशी

# तेरे शहर की खामोशी #शायरी

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