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हो गया पराया शहर मेरा, जब से कमाने के लिए आया, तरस

हो गया पराया शहर मेरा, जब से कमाने के लिए आया,
तरसा अपने शहर की हवा को, मिट्टी को छू नहीं पाया।
अपने लोगों की यादें दिल में बसाए जैसे तैसे जी रहा हूं,
उस शहर का मीठा पानी छोड़, ग़म के आँसू पी रहा हूं।

©Amit Singhal "Aseemit"
  #पराया #शहर