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Meri Mati Mera Desh अकेला मेघो की गर्जना ये

Meri Mati Mera Desh       अकेला

मेघो की गर्जना ये;
क्या नूर बन जाऊं?
लगती कहाँ चिंगारी अब यहाँ ?
रात्रि में कैसे प्रभात बन जाऊं ?

चलती है कश्ती यहाँ, जरा धीरे;
बेड़िया, कैसे पार कर जाऊं ?
कहते वो, अकेले हो तुम ;
भला क्या, अब रार कर जाऊं ?

फूलों में महकना भी;
देख उन्हें क्या मंडराना सीख जाऊं ?
जन्नत की इन झूठी लकीरो में-
क्या जिंदगी को सहलाना भूल जाऊं ?

नजरंदाजियो का यहां खौफ भी 
लकीरें उनकी, क्या संभालने को मिट जाऊं ?
अभी हूँ मैं, यहाँ अकेला ?
क्या अब महफ़िल को आनंद लुटाना भी भूल जाऊं ?

©Saurav life #MeriMatiMeraDesh 
#sauravlife
Meri Mati Mera Desh       अकेला

मेघो की गर्जना ये;
क्या नूर बन जाऊं?
लगती कहाँ चिंगारी अब यहाँ ?
रात्रि में कैसे प्रभात बन जाऊं ?

चलती है कश्ती यहाँ, जरा धीरे;
बेड़िया, कैसे पार कर जाऊं ?
कहते वो, अकेले हो तुम ;
भला क्या, अब रार कर जाऊं ?

फूलों में महकना भी;
देख उन्हें क्या मंडराना सीख जाऊं ?
जन्नत की इन झूठी लकीरो में-
क्या जिंदगी को सहलाना भूल जाऊं ?

नजरंदाजियो का यहां खौफ भी 
लकीरें उनकी, क्या संभालने को मिट जाऊं ?
अभी हूँ मैं, यहाँ अकेला ?
क्या अब महफ़िल को आनंद लुटाना भी भूल जाऊं ?

©Saurav life #MeriMatiMeraDesh 
#sauravlife
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