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लघु कथा || चाँद || छोटुअक्सर आ

 लघु कथा 
         || चाँद ||
   
      छोटुअक्सर आकाश की थाली में चंद सिक्को के साथ रोटी का चमकता टुकड़ा देखता था और उसकी आँखों में पानी भर आता था वह उसे पकड़ने के लिये आगे बड़ा और हाथ बड़ाने लगा ।जैसे ही चाँद की तरफ उसका हाथ बड़ा उसकी आँसुओं की परत में हलचल उठी और पानी पर कई वलय बन गये जो कि उसकी चाँद वाली रोटी को ओझल कर गये वह घबराया जिससे उसका सपना टूट गया। वह उठ कर दरवाजे की तरफ दौड़ा माँ ने कई आवाज लगायी उसने एक भी न सुनी। और अपने घर के पास के होटल की रोड के दूसरी पार खड़ा हो गया।होटल में लोगो के हाथों में रोटी का एक एक टुकड़ा उसे चाँद नज़र आ रहा था। जो उसके सपने की भाँति मिलों दुर व एक अदृश्य परत में कैद नजर आ रहा था।कुछ देर होटल को ताकने के बाद वो वापस घर आ गया।
माँ बोली बेटा ले रोटी खा ले आज मालकिन के यहाँ पार्टी थी तो खाना बच गया था जो तेरे बापू ले अाये।छोटू ने आँसू पोंछे और पहले अपनी माँ को खिलाया फिर खुद खाया।और बोला------ माँ यह चाँद हमारी थाली में रोज क्यों नहीं सजता।ये हमसे आसमान के चाँद की तरह दुर क्यूँ है।माँ रोने लगी और बोली----- बेटा चाँद को सितारों जैसे कई सिक्कों के साथ आने की आदत है वह तारों के बिना नहीं आता।बच्चा खाने में व्यस्त था उसे माँ की बात समझ में नहीं आई।उसे खुश देख माँ ने भी आँसू पौछे और खाना खाने लगी।
पारुल शर्मा 
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 लघु कथा 
         || चाँद ||
   
      छोटुअक्सर आकाश की थाली में चंद सिक्को के साथ रोटी का चमकता टुकड़ा देखता था और उसकी आँखों में पानी भर आता था वह उसे पकड़ने के लिये आगे बड़ा और हाथ बड़ाने लगा ।जैसे ही चाँद की तरफ उसका हाथ बड़ा उसकी आँसुओं की परत में हलचल उठी और पानी पर कई वलय बन गये जो कि उसकी चाँद वाली रोटी को ओझल कर गये वह घबराया जिससे उसका सपना टूट गया। वह उठ कर दरवाजे की तरफ दौड़ा माँ ने कई आवाज लगायी उसने एक भी न सुनी। और अपने घर के पास के होटल की रोड के दूसरी पार खड़ा हो गया।होटल में लोगो के हाथों में रोटी का एक एक टुकड़ा उसे चाँद नज़र आ रहा था। जो उसके सपने की भाँति मिलों दुर व एक अदृश्य परत में कैद नजर आ रहा था।कुछ देर होटल को ताकने के बाद वो वापस घर आ गया।
माँ बोली बेटा ले रोटी खा ले आज मालकिन के यहाँ पार्टी थी तो खाना बच गया था जो तेरे बापू ले अाये।छोटू ने आँसू पोंछे और पहले अपनी माँ को खिलाया फिर खुद खाया।और बोला------ माँ यह चाँद हमारी थाली में रोज क्यों नहीं सजता।ये हमसे आसमान के चाँद की तरह दुर क्यूँ है।माँ रोने लगी और बोली----- बेटा चाँद को सितारों जैसे कई सिक्कों के साथ आने की आदत है वह तारों के बिना नहीं आता।बच्चा खाने में व्यस्त था उसे माँ की बात समझ में नहीं आई।उसे खुश देख माँ ने भी आँसू पौछे और खाना खाने लगी।
पारुल शर्मा 
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Parul Sharma

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