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"पेड़ के पत्ते " डाल डाल पर थिरक रहे पत्ते, अपनी म

"पेड़ के पत्ते "
डाल डाल पर थिरक रहे पत्ते,
अपनी मर्जी से नीचे गिरते पत्ते।
मस्त होकर शाखाओं पर झूल रहे पत्ते,
पतझड़ में गिर जाते पत्ते,

सुख दुख से अनजाने पत्ते,
हर मौसम को झेल जाते पत्ते।
अपनी ही धुन में गाते पत्ते,
हवा चलने पर सीटी बजाते पत्ते।
बरसात में हंसते जाते पत्ते,
बसंत ऋतु में फिर से उग आते पत्ते।
प्रदूषण को पी जाते पते,
कभी नहीं घबराते पत्ते।
हर मौसम में मुस्कुराते पत्ते,
भोले शंकर बाबा की तरह जहर पी जाते पत्ते।
मानव को जीना सिखाते पत्ते,
मुश्किलों को झेलना सिखाते पत्ते।
"एस. पी. चौहान "

©Shishpal Chauhan
  #पेड़ के पत्ते

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