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सोच रहा हूं...... इस बेदर्द दुनिया से दूर चला जाऊं

सोच रहा हूं......
इस बेदर्द दुनिया से दूर चला जाऊं,
फिर कभी भी किसी को नजर ना आऊं।

जाकर कहीं जंगल में ठिकाना बनाऊं,
या सात समुद्र पार आशियाना बनाऊं।

सोच रहा हूं......
एक प्यारी-सी पतवार बनाऊं,
लेकर उनको बीच समंदर में उतर जाऊं।
जहां कोई नजर ना आए,
बस शांत माहौल का मंजर ही नजर आए।

सोच रहा हूं......
एकांत में जाकर समय बिताऊं,
केवल नीले आसमान को निहारता जाऊं।
धरती मां को अपने सोने का बिस्तर बनाऊं,
दिन रात प्रकृति का ही लुप्त उठाऊं।।

सोच रहा हूं......
अपने ख्वाबों के पंख लगाऊं,
पशु-पक्षियों को अपना परिवार बनाऊं।
पहाड़ों को अपनी ढाल बनाऊं,
सूरज से रोशनी और चंदा से शीतल चांदनी पाऊं।

©Shishpal Chauhan
  # चाहत

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