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सृर्दी क़ी वो दोपहर मैंने अपने आँगन मे मनभावन धूप

सृर्दी  क़ी वो दोपहर
मैंने  अपने आँगन मे मनभावन धूप  सँग.
गुज़ार दीं 
वृक्षों से छन कर आती हुई  रवि किरणों
द्वारा निर्मित उन छाया चित्रों  को देखते हुए
फिर सरक आई थी वे गुनगुनी स्मृतिया ज़ो
उन दृश्ययो के कारण जीवंत हो उठी थी
याद आई  वे खिल खिल हंसी क़ी क्षणिकाये
और वे लम्बी दूरी क़ी हरित पगडडिया
आम्र वृक्षों से गिरती हुई कच्ची  केरिया
सोचा मैंने  चेतन मूल्यों. के रिश्ते. कभी मृत नहीं होते
विविधताओ  से भरे. पोष्टीक  भावनाओं के वे
खूबसूरत  सौन्दर्यवर्णि  पल कभी.. नश्वर नहीं होते

©Parasram Arora सौंदर्यवर्णिणी पल 

#Journey
सृर्दी  क़ी वो दोपहर
मैंने  अपने आँगन मे मनभावन धूप  सँग.
गुज़ार दीं 
वृक्षों से छन कर आती हुई  रवि किरणों
द्वारा निर्मित उन छाया चित्रों  को देखते हुए
फिर सरक आई थी वे गुनगुनी स्मृतिया ज़ो
उन दृश्ययो के कारण जीवंत हो उठी थी
याद आई  वे खिल खिल हंसी क़ी क्षणिकाये
और वे लम्बी दूरी क़ी हरित पगडडिया
आम्र वृक्षों से गिरती हुई कच्ची  केरिया
सोचा मैंने  चेतन मूल्यों. के रिश्ते. कभी मृत नहीं होते
विविधताओ  से भरे. पोष्टीक  भावनाओं के वे
खूबसूरत  सौन्दर्यवर्णि  पल कभी.. नश्वर नहीं होते

©Parasram Arora सौंदर्यवर्णिणी पल 

#Journey