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शीर्षक - न है कोई रंग.... होठों के दामन काले..

शीर्षक - न है कोई रंग....


होठों के दामन काले.. 
बरसाने लगे नयन हमारे 
आते बादलों से ख़बर ए बूंदें.. 
तस्दीक करने लगे,सारे के सारे...

बदन पर तप रहे मन 
आंखों में जल रहे स्वप्न 
निगाहों के लीक पर.. 
क्यों खड़ा है आज भी दर्पण....

देखने को क्या है इस जिस्म के अंदर 
लेने को अब क्या है खाली हाथों के अंदर... 
बाली झुमके, सब रंग के है रंग... 
अब यहां  न है कोई रंग....!!

©Dev Rishi
   'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द
devrishidevta6297

Dev Rishi

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'दर्द भरी शायरी' शायरी दर्द

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