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ख़्वाब के रूप में नहीं, अश्क में ढल के आऊँगा अब क

 ख़्वाब के रूप में नहीं, अश्क में ढल के आऊँगा
अब के मैं तेरी  आँख में भेस  बदल के आऊँगा

शोलों भरा  सफ़र सही, आग की  रहगुजर सही
आप  बुलायेंगे  तो मैं  आग  पे चल  के आऊँगा

चाहे  नक़ाब  में  छुपो , चाहे   हिजाब  में  छुपाे
रोक  नहीं  सकोगे  तुम ऐसे  मचल  के आऊँगा

©Mehfil-e-Mohabbat
  ✍️♥️ रहमान फारिस ♥️✍️

✍️♥️ रहमान फारिस ♥️✍️ #शायरी

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