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गम को अपने पास बुलाना अच्छा लगता है, ज़ख्मों को फि

गम को अपने पास बुलाना अच्छा लगता है,
ज़ख्मों को फिर से सहलाना अच्छा लगता है,

कितनी बार टूटकर बिखरा है दिल का दर्पण, 
पत्थर से फिर भी टकराना अच्छा लगता है,

ख़ुशी बाँटकर दुःख का सौदा करते रहे सदा,
काँटों से ही जख़्म मिटाना अच्छा लगता है,

पर्वत सी पीड़ा उतरी दिल पर गंगा बनकर, 
शिव की भाँति जटा फैलाना अच्छा लगता है,

ख़ुशियाँ मिले निरंतर सबको यही भाव भरकर,
दरिया  के  विपरीत  तैरना  अच्छा  लगता  है, 

दीगर है यह बात सफलता मिली नहीं 'गुंजन',
पगडण्डी से दिल बहलाना अच्छा लगता है, 
    --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #अच्छा लगता है#
गम को अपने पास बुलाना अच्छा लगता है,
ज़ख्मों को फिर से सहलाना अच्छा लगता है,

कितनी बार टूटकर बिखरा है दिल का दर्पण, 
पत्थर से फिर भी टकराना अच्छा लगता है,

ख़ुशी बाँटकर दुःख का सौदा करते रहे सदा,
काँटों से ही जख़्म मिटाना अच्छा लगता है,

पर्वत सी पीड़ा उतरी दिल पर गंगा बनकर, 
शिव की भाँति जटा फैलाना अच्छा लगता है,

ख़ुशियाँ मिले निरंतर सबको यही भाव भरकर,
दरिया  के  विपरीत  तैरना  अच्छा  लगता  है, 

दीगर है यह बात सफलता मिली नहीं 'गुंजन',
पगडण्डी से दिल बहलाना अच्छा लगता है, 
    --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #अच्छा लगता है#