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आत्मबोध और आत्मज्ञान ने सब कुछ विस्मित कर डाला। जी

आत्मबोध और आत्मज्ञान ने सब कुछ विस्मित कर डाला।
जीवन भर जो पीते थे वो अमृत था विष का प्याला।।
निरुद्देश्य  ही  भावों  की  उत्पत्ति  ने  संतप्त किया।
अंततोगत्वा ज्ञान के दीपक ने ही मार्ग प्रशस्त किया।।
,
कण कण में जो सार छिपे थे सारहीन थे ज्ञान बिना।
यह शरीर भटक था वर्षों जब शरीर था प्राण बिना।।
सौंदर्य  रूप  का  दृष्टि  से  है सृष्टि में बस दृष्टि तक।
सौंदर्य आत्म का मार्गद्वार है निर्विवाद ही कीर्ति तक।।
,
किस प्रकार मानव जीवन ये संशय करता रहता है।
मोह पाश में बंधकर के वो स्वयं से डरता रहता है।।
सरल नहीं यह परिभाषा न व्याख्यायित हो पाएगी।
मुझ अबोध के शब्दों से क्या परिभाषित हो पाएगी।।
,
यह रचना है छ्द्म अगर तो सत्य नहीं क्या इस जग में।
या प्रभाव है काल खंड जो चलता है अपने मद में।।
शब्द शब्द ही शब्द शब्द के आशय को गढ़ सकतें है।
शब्द स्वतंत्र हो मानव के क्या भावों को पढ़ सकते है।।
,
आश्चर्यजनक है प्रश्न मगर,यह प्रश्न रहेगा जीवन भर।
जीवन दर्शन चिंतन है या चिंतन है बस चिंतन भर।।
आत्मबोध और आत्मज्ञान ने सब कुछ विस्मित कर डाला।
जीवन भर जो पीते थे वो अमृत था विष का प्याला।।
निरुद्देश्य  ही  भावों  की  उत्पत्ति  ने  संतप्त किया।
अंततोगत्वा ज्ञान के दीपक ने ही मार्ग प्रशस्त किया।।
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कण कण में जो सार छिपे थे सारहीन थे ज्ञान बिना।
यह शरीर भटक था वर्षों जब शरीर था प्राण बिना।।
सौंदर्य  रूप  का  दृष्टि  से  है सृष्टि में बस दृष्टि तक।
सौंदर्य आत्म का मार्गद्वार है निर्विवाद ही कीर्ति तक।।
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किस प्रकार मानव जीवन ये संशय करता रहता है।
मोह पाश में बंधकर के वो स्वयं से डरता रहता है।।
सरल नहीं यह परिभाषा न व्याख्यायित हो पाएगी।
मुझ अबोध के शब्दों से क्या परिभाषित हो पाएगी।।
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यह रचना है छ्द्म अगर तो सत्य नहीं क्या इस जग में।
या प्रभाव है काल खंड जो चलता है अपने मद में।।
शब्द शब्द ही शब्द शब्द के आशय को गढ़ सकतें है।
शब्द स्वतंत्र हो मानव के क्या भावों को पढ़ सकते है।।
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आश्चर्यजनक है प्रश्न मगर,यह प्रश्न रहेगा जीवन भर।
जीवन दर्शन चिंतन है या चिंतन है बस चिंतन भर।।
rameshsingh8886

Ramesh Singh

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