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मिटे वो दिल जो तेरे ग़म को ले के चल न सके वही चिर

मिटे वो दिल जो तेरे ग़म को ले के चल न सके
वही  चिराग़  बुझाये   गये  जो   जल   न  सके

हम इस लिए नयी दुनिया के साथ चल न सके
कि जैसे रंग यह  बदलती है  हम बदल न सके

मैं  उन  चिराग़ों  की  उम्रे - वफ़ा  को  रोता  हूं
जो एक शब भी मेरे दिल के साथ जल न सके

मैं वो मुसाफ़िर- ग़मगीं हूं जिसके साथ ' वसीम '
खिज़ां के दौर भी  कुछ दूर चल के चल न सके

प्रो वसीम बरेलवी
मुसाफ़िर- ग़मगीं  = दुखी यात्री

©Vivek Dixit swatantra
  #प्रो.वसीम बरेलवी

#प्रो.वसीम बरेलवी #शायरी

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