कविता का शीर्षक- 2047 में मेरे सपनों का भारत सोने की चिड़िया थी भारत इतिहास ने ऐसा बताया था गुरुकुल की पद्धति ने शिक्षा का अलख जगाया था हिंसा है पाप सुनो बंधु अशोक ने यह समझाया था फूट डालो और राज करो दुश्मन ने नीति अपनाया था झांसी की तलवार ने दुश्मन को सबक सिखाया था विद्वानों की सभा ने संविधान ऐसा बनाया था मिलजुल कर सब रहने लगे इतिहास में वह दिन भी आया था लेकिन विश्व गुरु की धरती पर आज युवा इतना बेचारा क्यों सिंच सिंच अन्न जो उपजावै उन्हें न मिले सहारा क्यों लोकतंत्र के देश में हरखू को ठाकुर मारा क्यों केहू के है चमचम साड़ी के केहू के फटा किनारा क्यों बेटी को न्याय दिलवाने में बाप का हौसला हारा क्यों घर जला कर पूछते हैं साहब तुम्हारे आंख का पानी खारा क्यों चीख चीख कर निर्भया पूछे ऐसा देश हमारा क्यों लेकिन 2047 में मैं भारत ऐसा बनाऊंगी हर घर में सीता होगी मैं सीता में झांसी लाऊंगी रावण की कुदृष्टि पर मैं लंका स्वयं जल आऊंगी बाबा तू चिंता ना करें मैं तोहरो सर उठाऊंगी मेहनत से उत्पन्न अन्न का उचित दाम दिलवाउंगी 2047 में...... घूम घूम घर चूहा खोदे ऐसे नेता हटाऊंगी संसद के बाबू साहब से खेती भी करवाऊंगी मंदिर मस्जिद के जगह विद्या मंदिर बनवाऊंगी युवा के हौसले को मैं बुलंदी पर ले जाऊंगी 2047 में..... अमीर गरीब के बीच की खाई बुद्धि से मिटाउंगी हरखू को बाबू साहब के सोफे पर बैठाउंगी भ्रष्टाचार करने वाले को तत्काल सजा सुनाउंगी राष्ट्रहित में हो जो नीति उस नीति को अपनाउंगी 2047 में...... युद्ध को घर ललकारे दुश्मन ईट से ईट बजाऊंगी वचनों से अगर चूक गई मैं तो मां भारती को सीस चढ़ाऊंगी गलती जहां रही मेरी मैं नतमस्तक हो जाऊंगी लेकिन लोकतंत्र की कलम से दरबारी गीत नहीं गाऊंगी ©Barkha B.H.U #2047clikz #touch