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दर्पण देखूं तो क्या देखूं देखूं न प्रीतम अविनाशी।

दर्पण देखूं तो क्या देखूं 
देखूं न प्रीतम अविनाशी।
कांच का टुकड़ा पांच दिखाएं।
दिखाएं न एक रूप अविनाशी।

मिथ्या माया में मन भटकाए।
केवल बाहर का काया दिखाएं।
देखूं तो क्या देखूं दर्पण में,
दर्पण तो केवल झूठ दिखाएं।

©Narendra kumar
  #lily