"मामूली नौकरिया ", उम्र गुजर गयी, ऊँची ख्वाहिशों की दौड़ में, रोंदते चले गए,कहीं सपने छोटे, वक़्त की लाठी पड़ी तो जाना , ऊँची ख्वाहिशे तो और ऊँची हो गयी, जो मिल जाया करती थी "मामूली नौकरिया", जाने कब से वो भी मामूली ना रह गयी | ©Sonam kuril "मामूली नौकरिया ", उम्र गुजर गयी, ऊँची ख्वाहिशों की दौड़ में, रोंदते चले गए,कहीं सपने छोटे, वक़्त की लाठी पड़ी तो समझे, ऊँची ख्वाहिशे तो और ऊँची हो गयी, जो मिल जाया करती थी "मामूली नौकरिया", जाने कब से वो भी मामूली ना रह गयी |